प्रिय दोस्तों नमस्ते|
आने वाले नए वर्ष की ढेर सारी शुबह कामनाए, आप सभी को आने वाला साल ढेर सारी खुशिया दे और आप की सारी इच्छाए पूरी हो मेरी नरायण से यही प्रार्थना है |
मैंने अपने नारायण से इस वर्ष स्वयं के लिये कुछ मग है जो मै आप सब को बताना चाहती हू अगर आप सब को पसंद आया तो मुझे बड़ी ख़ुशी होगी |
धन्न्यबाद |
इस राग के संसार में.........................!
इस राग के संसार में फस जाऊ न भगवन .
इतनी कृपा करना न छूटे आप का दामन |
इस राग ........................
हे जग के पालनहार , तुम्ही हो इसके रचनाकार
दिल में रहो साकार ,यही मेरी करुण पुकार |
बस आप के चरणों में बीते शेष ये जीवन ....................
इस राग के............|
फस जाऊ न कही , रखना दया दृष्टी |
तेरे इशारे पर टिकी है ये सरल सृष्टी |
हिरदय की भक्ति ज्योति जलती ही रहे हरदम....
इस राग के ......................|
संसार के स्वामी , सुनलो अंतर्यामी
हों तेरे अनुगामी , कर दो दया दानी |
करती हू बारम्बार इस मन पुष्प को अर्पण...........
इस राग के............................
न मोक्छ की इच्छा , न लोक की दीक्षा |
करती रहू तुम्हरा भजन , दे दो यही भिक्षा |
इन चरण कमलो की ही सेवा में रहू मगन |....
इस राग के .........................|
जय श्री हरी .......................................
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
मंगलवार, 2 नवंबर 2010
दीपावली एक निराला त्यौहार है.
दीपावली एक निराला त्यौहार है.
दीपावली के दिन ऐसी मान्यता है की इस दिन प्रभु श्री राम चन्द्र जी अपने १४ वर्ष के वनवास को समाप्त कर रावण के वध के बाद अयोद्ध्या को वापश लौटे ,उनके अयोद्ध्या आने की ख़ुशी में वहां के निवाशियो ने पूरे नगर को दीप मालाओ से सजा कर अपनी ख़ुशी को व्यक्त किया|
हम लोग भी हर वर्ष उनके स्वागत में अपने घर को स्वक्छ कर के दीपो से सजाते है | लोगो का मन्ना है की इस दिन घर को साफ रखने से लक्छमी माता शुख संपत्ति ले कर हमारे घरो में प्रवेश करती है.|
आइये हम आज फिर अपने घर को साफ सुथरा बना कर माँ लक्छमी और भगवन श्री राम जी का स्वागत करे.
आप सभी को धन्तेरश और दीपावली की ढेर सारी बधाईया |
दीपावली के दिन ऐसी मान्यता है की इस दिन प्रभु श्री राम चन्द्र जी अपने १४ वर्ष के वनवास को समाप्त कर रावण के वध के बाद अयोद्ध्या को वापश लौटे ,उनके अयोद्ध्या आने की ख़ुशी में वहां के निवाशियो ने पूरे नगर को दीप मालाओ से सजा कर अपनी ख़ुशी को व्यक्त किया|
हम लोग भी हर वर्ष उनके स्वागत में अपने घर को स्वक्छ कर के दीपो से सजाते है | लोगो का मन्ना है की इस दिन घर को साफ रखने से लक्छमी माता शुख संपत्ति ले कर हमारे घरो में प्रवेश करती है.|
आइये हम आज फिर अपने घर को साफ सुथरा बना कर माँ लक्छमी और भगवन श्री राम जी का स्वागत करे.
आप सभी को धन्तेरश और दीपावली की ढेर सारी बधाईया |
रविवार, 5 सितंबर 2010
गुरु चरणों में वंदन है. शुबह शाम अभिनन्दन है
नमोनम: ,आप सभी ब्लोगर जगत के लोगो को मेरी तरफ से 'अध्यापक दिवस' की ढेर सारी शुभकामनायें |
मैंने अपने गुरु के लिये कुछ चार लाइने लिखी हैं जो आप सभी के सामने पेश करना चाहती हूँ कृपया जो भी गलतिया हो उसे माफ करे ,
गुरु चरणों में वंदन है ,शुबह शाम अभिनन्दन है
हे गुरुवार कृपा रखो, यह संसार समंदर है
गुरु .............................
ह्रदय ज्ञान का दीप जलाते ,
ईश्वर से तुम ही मिलवाते,
तुम्हरी कृपा बनी हो सब पर,
तुम्हरी छवि ह्रदय में रख कर ,
करते निशि दिन अर्चन है,
शुबह शाम ...........................
मै दीपक और तुम हो ज्योति ,
तुम न होते मै न होती,
दिल में ज्ञान का दीप जलाया,
अंधियारे को दूर भगाया ,
गुरु ज्ञान का संगम है ,
शुबह शाम ................................
तुम ही मात-पिता व ईश्वर,
तुम में ज्ञान प्रवाह निरंतर,
जग को सही राह दिखलाते ,
भवर नाव को पार लगाते,
करते दुःख का भंजन है ,
शुबह शाम..........................
गुरु चरणों में वंदन है.
धन्यवाद .आप की (ज्योति)
मैंने अपने गुरु के लिये कुछ चार लाइने लिखी हैं जो आप सभी के सामने पेश करना चाहती हूँ कृपया जो भी गलतिया हो उसे माफ करे ,
गुरु चरणों में वंदन है ,शुबह शाम अभिनन्दन है
हे गुरुवार कृपा रखो, यह संसार समंदर है
गुरु .............................
ह्रदय ज्ञान का दीप जलाते ,
ईश्वर से तुम ही मिलवाते,
तुम्हरी कृपा बनी हो सब पर,
तुम्हरी छवि ह्रदय में रख कर ,
करते निशि दिन अर्चन है,
शुबह शाम ...........................
मै दीपक और तुम हो ज्योति ,
तुम न होते मै न होती,
दिल में ज्ञान का दीप जलाया,
अंधियारे को दूर भगाया ,
गुरु ज्ञान का संगम है ,
शुबह शाम ................................
तुम ही मात-पिता व ईश्वर,
तुम में ज्ञान प्रवाह निरंतर,
जग को सही राह दिखलाते ,
भवर नाव को पार लगाते,
करते दुःख का भंजन है ,
शुबह शाम..........................
गुरु चरणों में वंदन है.
धन्यवाद .आप की (ज्योति)
रविवार, 15 अगस्त 2010
देश ने पुकारा है...........................|
देश ने पुकारा है...........................|
मेरे देश के सभी वाशियों को मेरी तरफ से स्वन्त्रतादिवस की ढेर सारी शुभ कामनाएं | अपने देश का आज जो हल है उसे देखकर मुझे बहुत कष्ट होता है पर किसी ने कहा है की "अकेला चना भाडं नहीं फोड़ सकता" इसी लिये मै अपने सभी देशवासियों को अपना सन्देश पहचाना चाहती हूँ |आज स्वंत्रता दिवस के दिन जब मै अपने देश के वीर शहीदों को याद कर रही थी तो मेरे मन में देश की आज जो दुर्गति हो रही है वो कविता का रूप लेने लगी और मैंने उसे इस प्रकार पंक्तिबद्ध किया है|जो भी गलतिया हो कृपया माफ करे|
देश के सपूतो सुनो ,देश ने पुकारा है,
सुन पुकार तुम उठो ,वक्त का इशारा है|
देश के..........................
जिस तरह से देश हित में,
प्राण तज गये पल में,
उन्ही देश भक्तो ने तुमको फिर पुकारा है,
अब न रुको बढ़ चलो ,स्वार्थ न गवारा है,|
देश ....................
राजनीती की बिसात ,बिछ चुकी है कैसी आज,
दाव पर लगा माँ को ,हंस रहा नाकारा है,
बन के कृष्ण आवो तुम,लाज फिर बचाओ तुम,
कह रही है माँ जननी ,बस तेरा सहारा है,|
देश.................................
अपनी माँ का देख हाल,दुखित हुए वीर लाल ,
मिट गये जो देश हित में ,कर रहे है वो मलाल,
भेजते हमें सन्देश ,उठ पुकारता है देश,
आर्त स्वर में कह रहा ,देश ये हमारा है,|
देश........................................
बढ़ चलो समर भू में,गाओ सभी एक स्वर में ,
देश की भलाई को,बढ़ चलो सभी रण में,
आज न रुकेंगे हम, कर लिया है मन में प्रण,
वीर पथ पे चलना ही,कर्म अब हमारा है.
देश...........................................|
मेरे देश के सभी वाशियों को मेरी तरफ से स्वन्त्रतादिवस की ढेर सारी शुभ कामनाएं | अपने देश का आज जो हल है उसे देखकर मुझे बहुत कष्ट होता है पर किसी ने कहा है की "अकेला चना भाडं नहीं फोड़ सकता" इसी लिये मै अपने सभी देशवासियों को अपना सन्देश पहचाना चाहती हूँ |आज स्वंत्रता दिवस के दिन जब मै अपने देश के वीर शहीदों को याद कर रही थी तो मेरे मन में देश की आज जो दुर्गति हो रही है वो कविता का रूप लेने लगी और मैंने उसे इस प्रकार पंक्तिबद्ध किया है|जो भी गलतिया हो कृपया माफ करे|
देश के सपूतो सुनो ,देश ने पुकारा है,
सुन पुकार तुम उठो ,वक्त का इशारा है|
देश के..........................
जिस तरह से देश हित में,
प्राण तज गये पल में,
उन्ही देश भक्तो ने तुमको फिर पुकारा है,
अब न रुको बढ़ चलो ,स्वार्थ न गवारा है,|
देश ....................
राजनीती की बिसात ,बिछ चुकी है कैसी आज,
दाव पर लगा माँ को ,हंस रहा नाकारा है,
बन के कृष्ण आवो तुम,लाज फिर बचाओ तुम,
कह रही है माँ जननी ,बस तेरा सहारा है,|
देश.................................
अपनी माँ का देख हाल,दुखित हुए वीर लाल ,
मिट गये जो देश हित में ,कर रहे है वो मलाल,
भेजते हमें सन्देश ,उठ पुकारता है देश,
आर्त स्वर में कह रहा ,देश ये हमारा है,|
देश........................................
बढ़ चलो समर भू में,गाओ सभी एक स्वर में ,
देश की भलाई को,बढ़ चलो सभी रण में,
आज न रुकेंगे हम, कर लिया है मन में प्रण,
वीर पथ पे चलना ही,कर्म अब हमारा है.
देश...........................................|
रविवार, 8 अगस्त 2010
दोस्तों आज कल के इस मौसम में जहाँ हर तरफ पानी ही पानी बर्ष रहा है वाही कहीं -कहीं बरसात न होने के कारन सूखे के आसार नज़र आ रहे है. जैसे हमारे अकबरपुर शहर की तरफ | ऐसा लगने लगा है की इन्द्र देवता हम से नाराज़ हो गाये है.उनके इस व्यवहार से बस यही गाने को मन करता है की....................
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी|
सावन सस्य श्याम वसुधा चाहे ,उमणि-घुमणि घन बरसे रामा
हरे रामा तब भये सूर्य सयाने धन मुरझाने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
भादौ भरे लाल पोखर तेहि,राज सकल जग सूखे रामा ,
हरे रामा रोवै गरीब किसान ,राम रिसियाने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
क्वार कड़की कै का करिहै ,जब कुहिकी जाये किसनैया रामा ,
हरे रामा चुनिगा चिरैया खेत तो का पछताने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
बूढ़ भये किधौ मन मोहन नहीं ,सूझत जगत बिपतिया रामा ,
हरे रामा सोवो यशोदा के पूत पीताम्बर ताने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
देखि अनीति अधीर 'आर्त' से,सुरपति कतहु भेटाने रामा ,
हरे रामा लाठिनी फोरी कापर ,निपट लेब थाने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी|
सावन सस्य श्याम वसुधा चाहे ,उमणि-घुमणि घन बरसे रामा
हरे रामा तब भये सूर्य सयाने धन मुरझाने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
भादौ भरे लाल पोखर तेहि,राज सकल जग सूखे रामा ,
हरे रामा रोवै गरीब किसान ,राम रिसियाने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
क्वार कड़की कै का करिहै ,जब कुहिकी जाये किसनैया रामा ,
हरे रामा चुनिगा चिरैया खेत तो का पछताने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
बूढ़ भये किधौ मन मोहन नहीं ,सूझत जगत बिपतिया रामा ,
हरे रामा सोवो यशोदा के पूत पीताम्बर ताने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
देखि अनीति अधीर 'आर्त' से,सुरपति कतहु भेटाने रामा ,
हरे रामा लाठिनी फोरी कापर ,निपट लेब थाने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |
रविवार, 25 जुलाई 2010
जरा सोचो,हमारे देश का पिता कौन ?agar
आज जब मै ऐसे ही बैठी सोच रही थी तो मुझे अपने देश के शहीद नवजवानों की याद आने लगी,उन्हों ने जो देश के लिए किया , उनके लिए यह देश उसका आधा भी नहीं कर पाया यह सोच कर बहुत दुःख होता है| सारे त्याग और ताप भगत सिंह,चंद्रशेखर ,विश्मिल ,मंगल,लाला लाजपत राय जी आदि ने किया और सारा श्रेय एक बूढ़े खूसट को मिल गया |जिस इन्सान ने त्याग के नाम पर अपनी मूछ का एक बल तक हमारे देश को नहीं दिया,बल्कि अंग्रेजो की गुलामी में अपने देश की आजादी तक को पीछे छोड़ दिया,उस चरित्रहीन इन्सान को इस देश का पिता बना दिया | यह हमारे देश का दुर्भाग्य है की हम हर कपटी और नीच इन्सान पर भरोषा कर लेते है और उसे देश की सबसे ऊँची किर्शी पर बैठा देते है ,|
मै सोचती हूँ की कब इस देश के लोग जगेगे और उन्हें इन्सान की सही पहचान होगी,कब हर ब्यक्ति को उसका उचित स्थान मिलेगा | पर यदि यह मेरी सोच है तो शायद सारा देश या युआ वर्ग की यही सोच हो ,लोग इस ओर भी ध्यान दे यह देश के लिए उन्नति की बात होगी |
मैंने जो कुछ भी लिखा वो किसी को दुःख पहुचाने के लिये नहीं लिखा बल्कि अपनी सोच और इच्छा ब्यक्त की है| जो आप को बता दिया गया है वो ही सही है यह जरूरी नहीं है ,आप खुद ही सोचिये की जो ब्यक्ति अपने जीवन के आधे से अधिक साल विदेश में बिताये हो और देश की आजादी में किसी प्रकार का योगदान नहीं किया ,देश के आजाद होने पार भी जिस के चेहेरे पार ख़ुशी नहीं आई बल्कि वो किसी कोने में अनसन पर बैठ कर बकरी का दूध और फल खा कर उदाशी का ढोंग कर रहा हो वो देश का पिता हो सकता है.| वो क्या इस देश का कोई पिता नहीं बन सकता क्यूँ की यह देश हमारी माँ है ,इसका पति वो जगत पति है. वो ही हमारा पिता है,जो इश्वर,अल्लाह और भगवन है.|अगर गाँधी इस देश के पिता है तब तो वो बह्ग्वन हो गाये न |एक मामूली सा दब्बू सा इन्सान भगवन से भी ऊँचा हो गया ???????????????????????? जरा सोंचो हमारे देश का पिता कौन ??????????
धन्न्यबाद
मै सोचती हूँ की कब इस देश के लोग जगेगे और उन्हें इन्सान की सही पहचान होगी,कब हर ब्यक्ति को उसका उचित स्थान मिलेगा | पर यदि यह मेरी सोच है तो शायद सारा देश या युआ वर्ग की यही सोच हो ,लोग इस ओर भी ध्यान दे यह देश के लिए उन्नति की बात होगी |
मैंने जो कुछ भी लिखा वो किसी को दुःख पहुचाने के लिये नहीं लिखा बल्कि अपनी सोच और इच्छा ब्यक्त की है| जो आप को बता दिया गया है वो ही सही है यह जरूरी नहीं है ,आप खुद ही सोचिये की जो ब्यक्ति अपने जीवन के आधे से अधिक साल विदेश में बिताये हो और देश की आजादी में किसी प्रकार का योगदान नहीं किया ,देश के आजाद होने पार भी जिस के चेहेरे पार ख़ुशी नहीं आई बल्कि वो किसी कोने में अनसन पर बैठ कर बकरी का दूध और फल खा कर उदाशी का ढोंग कर रहा हो वो देश का पिता हो सकता है.| वो क्या इस देश का कोई पिता नहीं बन सकता क्यूँ की यह देश हमारी माँ है ,इसका पति वो जगत पति है. वो ही हमारा पिता है,जो इश्वर,अल्लाह और भगवन है.|अगर गाँधी इस देश के पिता है तब तो वो बह्ग्वन हो गाये न |एक मामूली सा दब्बू सा इन्सान भगवन से भी ऊँचा हो गया ???????????????????????? जरा सोंचो हमारे देश का पिता कौन ??????????
धन्न्यबाद
शनिवार, 17 जुलाई 2010
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
आखिरी तमन्ना
यह गीत मेरे पिता जी ने लिखा ,कब लिखा यह तो नहीं पता पार शायद इस दुनिया की धन लोलुपता देख कर अपनी इच्छा ज़ाहिर की होगी ,वो हनुमान जी के भक्त है ,यहाँ उन्होंने भगवन श्री कृष्ण से अपने दिल की यह बात कही की......................
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये ,
तेरा नाम रटते -रटते ,तन प्राण छूट जाये,
मेरे दिल में तेरी मूरत , ऐसे बसे मुरारी,
जल जाये प्रेम ज्योति ,अभिमान छूट जाये,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
निर्मल हो मेरा अंतर ,तेरा जप चले निरंतर,
बहे कृष्ण नाम धारा,मद कम छूट जाये ,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
क्या गरज धन कमा कर ,दुनिया में नाम पायें ,
मुझे चरणों में जगह दो ,सम्मान छूट जाये ,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
मुझे अपना जो बना लो ,दुख द्वंदों से छुड़ा कर ,
मिटे राग द्वेष सारा,जप ध्यान छूट जाये,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
न हुनर न कोई ढंग है,'आर्त' हीन मन है,
क्या अभी भी हम पे शक है जो श्याम रूठ जाये .
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये.
यह गीत मेरे पिता जी ने लिखा ,कब लिखा यह तो नहीं पता पार शायद इस दुनिया की धन लोलुपता देख कर अपनी इच्छा ज़ाहिर की होगी ,वो हनुमान जी के भक्त है ,यहाँ उन्होंने भगवन श्री कृष्ण से अपने दिल की यह बात कही की......................
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये ,
तेरा नाम रटते -रटते ,तन प्राण छूट जाये,
मेरे दिल में तेरी मूरत , ऐसे बसे मुरारी,
जल जाये प्रेम ज्योति ,अभिमान छूट जाये,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
निर्मल हो मेरा अंतर ,तेरा जप चले निरंतर,
बहे कृष्ण नाम धारा,मद कम छूट जाये ,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
क्या गरज धन कमा कर ,दुनिया में नाम पायें ,
मुझे चरणों में जगह दो ,सम्मान छूट जाये ,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
मुझे अपना जो बना लो ,दुख द्वंदों से छुड़ा कर ,
मिटे राग द्वेष सारा,जप ध्यान छूट जाये,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
न हुनर न कोई ढंग है,'आर्त' हीन मन है,
क्या अभी भी हम पे शक है जो श्याम रूठ जाये .
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये.
सोमवार, 12 जुलाई 2010
बारिश का मौसम ..........
नमस्कार प्रियो
आप सब को बारिस की रिमझिम फुहारों का यह प्यारा मौसम असीम खुशियों से नवाजे .
आप सब के लिए ..........
बारिश का मौसम आया
बारिश की हर एक बूँद , कह रही है झूम - झूम,
खुशियों का दिन मिला , देख कर हर दिल खिला,
कैसा है यह सुकून , कहता दिल झूम-झूम
बारिश की हर इक बूँद ..................
मिट रही धरती की प्यास , खिल गया हर दिल उदास,
पंछी सुर छेड़े आज , गाये मौसम के राग
पेड़ पौधे , वन जंगल , सब हुए खुशियों में चूर,
गाये बस गीत यही खुशियों में झूम-झूम,
बारिश................................
.
आप सब को बारिस की रिमझिम फुहारों का यह प्यारा मौसम असीम खुशियों से नवाजे .
आप सब के लिए ..........
बारिश का मौसम आया
बारिश की हर एक बूँद , कह रही है झूम - झूम,
खुशियों का दिन मिला , देख कर हर दिल खिला,
कैसा है यह सुकून , कहता दिल झूम-झूम
बारिश की हर इक बूँद ..................
मिट रही धरती की प्यास , खिल गया हर दिल उदास,
पंछी सुर छेड़े आज , गाये मौसम के राग
पेड़ पौधे , वन जंगल , सब हुए खुशियों में चूर,
गाये बस गीत यही खुशियों में झूम-झूम,
बारिश................................
.
रविवार, 4 जुलाई 2010
यह असामानता क्यों?
नमोनमा प्यारे भाई बहनों .मै जानती हूँ की मै बहोत दिनों बाद आप सब की सेवा में लौटी हूँ .उसके लिए मै आप सब से माफी चाहती हूँ .पर क्या सच में आप मुझे याद किये होंगे ? जब इस महगाई और भागमभाग ने किसी को सोचने तक का वक्त न दिया हो तो ऐसे में कौन किसे याद करेगा . अप को पता है इस समय सब से ज्यादा कौन परेशान है समंन्य जनता ,यहाँ समंन्य से मतलब है समंन्य वर्ग के
लोग .जो हर तरफ से पिस रहे है, क्यों की हमारी सरकार तो केवल पिछड़े और नीची जाती पर ही अपना सारा प्यार लुटा रही है उसे इस बात की गलत फहमी है की समंन्य वर्ग के लोग बड़े धानी और संपन्न है केवल कुछ गिने लोगो का उदाहरण दे कर उनके सारे अधिकार छीन लिया .
हमारी सरकार खुद ही एकता का राग अलापे गी और खुद ही छोटे बड़े ,समंन्य और पिछड़े लोगो में अंतर करती है .जब सरकार देश के सभी लोगो को समान दृष्टी से नहीं देखती तो उसे कोई हक़ नहीं की वो हम से आशा करे की हम संभव और एकता से रहे.अगर असी अपेछा रखनी हो तो पहले खुद यह भेदभाव मिटा कर सब को समान अधिकार दिए जाये और यह पहल सब से पहले शिक्षा के क्षेत्र में हो जहा सभी बच्चो को सामान scolarship दिए जाये. पढाई पूरी करने के बाद सभी को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरिया दी जाये .कहने का मतलब है की किसी भी क्षेत्र में असामान्यता नहीं होनी चाहिए तभी सभी मैंने में एकता और समभाव हो सकता है...
आखिर यह असामान्यता क्यों यह बात विचार करने योग्य है ......................................
मै जानती हूँ की मेरे यह सब कुछ कह देने से कुछ बदलने वाला नहीं फिर भी क्यों की सब को अपनी बात कहने का अधिकार है तो कह दिया... .न तो कभी ऐसा होगा और न ही कभी यह भेदभाव समाप्त होगा ..
पर मै चाहती हूँ की आप सब इस पर ध्यान दे क्यों की आप देश के भविष्य हो और आशा है की यदि कभी आप उस लायक हुए की समाज में परिवर्तन ला सके तो सब से पहले यही दूरी मिटने का प्रयत्न करे...............इश्वर करे की आप उस लायक जरूर हो.
धन्न्य्वाद ......जय हिंद .
लोग .जो हर तरफ से पिस रहे है, क्यों की हमारी सरकार तो केवल पिछड़े और नीची जाती पर ही अपना सारा प्यार लुटा रही है उसे इस बात की गलत फहमी है की समंन्य वर्ग के लोग बड़े धानी और संपन्न है केवल कुछ गिने लोगो का उदाहरण दे कर उनके सारे अधिकार छीन लिया .
हमारी सरकार खुद ही एकता का राग अलापे गी और खुद ही छोटे बड़े ,समंन्य और पिछड़े लोगो में अंतर करती है .जब सरकार देश के सभी लोगो को समान दृष्टी से नहीं देखती तो उसे कोई हक़ नहीं की वो हम से आशा करे की हम संभव और एकता से रहे.अगर असी अपेछा रखनी हो तो पहले खुद यह भेदभाव मिटा कर सब को समान अधिकार दिए जाये और यह पहल सब से पहले शिक्षा के क्षेत्र में हो जहा सभी बच्चो को सामान scolarship दिए जाये. पढाई पूरी करने के बाद सभी को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरिया दी जाये .कहने का मतलब है की किसी भी क्षेत्र में असामान्यता नहीं होनी चाहिए तभी सभी मैंने में एकता और समभाव हो सकता है...
आखिर यह असामान्यता क्यों यह बात विचार करने योग्य है ......................................
मै जानती हूँ की मेरे यह सब कुछ कह देने से कुछ बदलने वाला नहीं फिर भी क्यों की सब को अपनी बात कहने का अधिकार है तो कह दिया... .न तो कभी ऐसा होगा और न ही कभी यह भेदभाव समाप्त होगा ..
पर मै चाहती हूँ की आप सब इस पर ध्यान दे क्यों की आप देश के भविष्य हो और आशा है की यदि कभी आप उस लायक हुए की समाज में परिवर्तन ला सके तो सब से पहले यही दूरी मिटने का प्रयत्न करे...............इश्वर करे की आप उस लायक जरूर हो.
धन्न्य्वाद ......जय हिंद .
सोमवार, 24 मई 2010
जिंदगी कटती रही इस चाह में....................
मेरे प्यारे ब्लॉगर भाई बहनों मैं मेरी प्यारी आंटी जी की याद कुछ पंक्तिया लिख रही हू! वो बहोत ही स्नेही और सरल ह्रदय की थी पर दुर्भाग्य वस् वो हमें छोड़ कर चली गयी,हमें उन की बहोत याद आती है,यह दुःख दूर होने वाला तो नहीं पर आप सब के साथ अपना दुःख बाटू तो शायद यह कम हो जाये इसी इच्छा से मैं आप के सामने यह गीत लिख रही हूँ ,जो भी गलती हो कृपा कर माफ करे .
जिंदगी कटती रही इस चाह में
दिल से निकली यह दुआ उनके लिए
हों जहाँ खुश हो यही सजदे किये
न मिली फिर से मुझे वो राह में,
जिंदगी कटती रही इस चाह में.
आयें सपनो में ही चाहे वो मेरी ,
पूरी हो जाये दबी इच्छा मेरी.
मैं मिलू उनसे,करू बाते सभी
रोक लूँ उनको न जाने दू कभी.
मैं फ़शी हूँ आज किस अनुराग में,
जिंदगी .................................
कुएँ गयीं वो इस जहाँ को छोड़ कर
मोहे के सारे ही बंधन तोड़ कर,
हम सभी के दिल में यादें छोड़ कर,
अपने अपनों से ही मुख यू मोड़ कर.
मेरा दिल तो डूबता एह्शाश में
जिंदगी .......................................
उनके आँखों में भरी स्नेह ममता
थीं लुटाती प्रेम,आँखों में थी समता.
अब नहीं मिल पाएंगे उनसे कभी हम
सोंच कर इस बात को आँखे हुईं नाम,
जल रहा मन अब भी उनकी याद में,
जिंदगी...............................................
क्या है इच्छा अब तुम्हारी प्रभुवर मेरे,
अब परीक्छा दे न पाएंगे हम तेरे.
क्या उचित है? के सभी अच्छे दुःख भोगे,
दूर हो विस्स्वास,और सब तुमको कोसे
मैं ये सोचु आप की परवाह में
जिंदगी............................................
क्या आप को ही जरूरत है अच्छो की,
माँ धरा को नहीं चाहिए सांगत उनकी .
जन कर सबकुछ बने अंजान स्वामी
आप सुख-दुःख के विधाता अंतर्यामी
माफ कर देना मेरी गलती को प्रभुजी ,
पार कर देना फशी नईया भावर की
आप हो हर दुःख के तारणहार भगवन
जग करे है आप को सतसत नमन.
.
रविवार, 9 मई 2010
प्यारे ब्लागर भाई बहनों आज मात्र दिवस के शुभ अवसर पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाये .
पूरे विस्व की माँ जगजननी पृथ्वी माँ आप सभी को स्वक्छ निर्मल और पवित्र जीवन प्रदान करे .
पूरे विस्व की माँ जगजननी पृथ्वी माँ आप सभी को स्वक्छ निर्मल और पवित्र जीवन प्रदान करे .
गुरुवार, 6 मई 2010
माँ धरती कर रही पुकार I
प्यारे दोस्तों आप हम सब जानते है की आज धरती माता से हरियाली दूर होती जा रही है और इस बात से सब परेशां भी है पर केवल परेशान होने से कुछ हासिल नहीं होने वाला. यही सोचते-२ मरे मन में कुछ पंक्तिया आई जो मैं सन्देश रूप में आप सब को सुनाना चाहती हूँ .यदि आप को पसंद आई तो मुघे बहुत ख़ुशी होगी ..............
माँ धरती कर रही पुकार
नहीं सुन रहा यह संसार
नहीं कर रहे इसका भान
मिट न जाये धरती की शान .
बंद करो अपनी जयकार ,
और ज़रा सुन लो इक बार .
माँ धरती कर रही पुकार I
अब न रही खुशहाली वैसी ,
कहाँ गयी हरियाली जो थी!
कटते वन व नदी सूखती ,
माँ धरती की ख़ुशी डूबती.
आब तो सोचो तुम इक बार ,
माँ धरती कर रही पुकार .
आओं सब मिल पौधे लगाये ,
धरती पर हरियाली लाये .
धरती की हर लें सब पीर,
मेघ सरश वार्षाएं नीर .
यही प्रार्थना है अब मेरी ,
उठ जाओ न करो देरी,
अब तो कदम बढाओ यार ,
माँ धरती कर रही पुकार.
अब तो सुन ले ये संसार
माँ धरती की करुण पुकार I
माँ धरती कर रही पुकार
नहीं सुन रहा यह संसार
नहीं कर रहे इसका भान
मिट न जाये धरती की शान .
बंद करो अपनी जयकार ,
और ज़रा सुन लो इक बार .
माँ धरती कर रही पुकार I
अब न रही खुशहाली वैसी ,
कहाँ गयी हरियाली जो थी!
कटते वन व नदी सूखती ,
माँ धरती की ख़ुशी डूबती.
आब तो सोचो तुम इक बार ,
माँ धरती कर रही पुकार .
आओं सब मिल पौधे लगाये ,
धरती पर हरियाली लाये .
धरती की हर लें सब पीर,
मेघ सरश वार्षाएं नीर .
यही प्रार्थना है अब मेरी ,
उठ जाओ न करो देरी,
अब तो कदम बढाओ यार ,
माँ धरती कर रही पुकार.
अब तो सुन ले ये संसार
माँ धरती की करुण पुकार I
रविवार, 2 मई 2010
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा
मेरे प्यारे ब्लॉगर भाई बहनों आप सब के comments मिले जिससे मुझे अत्यधिक ख़ुशी हुई आप सब के लिए मैंने कुछ लिखा शायद आप को पसंद आये .
आप सबो ने हमें शराहा
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा.
नमन आप सब को मेरा है
कभी न छूटे साथ हमारा
हुई ख़ुशी है मुझ को इतनी
ज्यू सागर में लहरे उठती
मेरे प्यारे भाई बहनों
थामे रहना हाथ हमारा
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा
आओं करे प्रणाम उन्हें हम,
जो थे देश के सच्चे हमदम
उन्ही के पद चिन्हों पर चल कर
देश को दे इक नया किनारा
वे भी हम पर नाज़ कर सके
कुछ ऐसा हो कम हमारा
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा
धन्न्यवाद है आप सभी को
मिला आप का साथ है हम को
देश प्रेम की धार बहे यूँ
सागर में ज्यू नदी की धारा
चलो करे कुछ देश की खातिर
आएगा न वक्त दोबारा
आओं मिल कर बोले हम सब
एक साथ जैहिंद का नारा
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा.
धन्न्यबाद
आप सबो ने हमें शराहा
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा.
नमन आप सब को मेरा है
कभी न छूटे साथ हमारा
हुई ख़ुशी है मुझ को इतनी
ज्यू सागर में लहरे उठती
मेरे प्यारे भाई बहनों
थामे रहना हाथ हमारा
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा
आओं करे प्रणाम उन्हें हम,
जो थे देश के सच्चे हमदम
उन्ही के पद चिन्हों पर चल कर
देश को दे इक नया किनारा
वे भी हम पर नाज़ कर सके
कुछ ऐसा हो कम हमारा
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा
धन्न्यवाद है आप सभी को
मिला आप का साथ है हम को
देश प्रेम की धार बहे यूँ
सागर में ज्यू नदी की धारा
चलो करे कुछ देश की खातिर
आएगा न वक्त दोबारा
आओं मिल कर बोले हम सब
एक साथ जैहिंद का नारा
बाग़-बाग़ दिल हुआ हमारा.
धन्न्यबाद
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
मैं भी चाहूँ देश के कुछ काम आना
मैं भी चाहूँ देश के कुछ काम आना
पर लगे के हर कदम रोके ज़माना
जिस तरह वीरों ने प्राणों की बलि दी
मर मिटूँ मैं भी यही दिल से लगे की
मैं भी बन जाऊ उन सा किस्सा पुराना
मेरे प्यारों याद कर फिर से जिलाना
मैं भी चाहूँ..............
याद आते हैं भगत,ज़स्वंत,विश्मिल
चंद्रशेखर और मंगल जी गले मिल
चढ गये सूली पे बस गाके तराना
मेरे यारों मा के आंचल को बचाना
मैं भी चाहूँ..............
ओ मेरे प्यारे वतन के लाडलों
देश भक्ति का वही जज्बा मुझे दो
तुम गये आया वही फिर से जमाना
देश का दुश्मन नहीं है वो पुराना
मैं भी चाहूँ..............
लूट के धन शक्ति की पहने है माला
और कहते हैं के ये है मेरी माया
देश की बनके बहन लूटे इसी को
और पूंछे क्या दिया है इसने हमको
अब न चल पायेगा इनका ये बहाना
देश की इज्जत बचाने को है ठाना
चाहिये बस कोर्इ इक साथी पुराना
जो मिलाये स्वर से स्वर गाये ये गाना
मैं भी चाहूँ..............
पर लगे के हर कदम रोके ज़माना
जिस तरह वीरों ने प्राणों की बलि दी
मर मिटूँ मैं भी यही दिल से लगे की
मैं भी बन जाऊ उन सा किस्सा पुराना
मेरे प्यारों याद कर फिर से जिलाना
मैं भी चाहूँ..............
याद आते हैं भगत,ज़स्वंत,विश्मिल
चंद्रशेखर और मंगल जी गले मिल
चढ गये सूली पे बस गाके तराना
मेरे यारों मा के आंचल को बचाना
मैं भी चाहूँ..............
ओ मेरे प्यारे वतन के लाडलों
देश भक्ति का वही जज्बा मुझे दो
तुम गये आया वही फिर से जमाना
देश का दुश्मन नहीं है वो पुराना
मैं भी चाहूँ..............
लूट के धन शक्ति की पहने है माला
और कहते हैं के ये है मेरी माया
देश की बनके बहन लूटे इसी को
और पूंछे क्या दिया है इसने हमको
अब न चल पायेगा इनका ये बहाना
देश की इज्जत बचाने को है ठाना
चाहिये बस कोर्इ इक साथी पुराना
जो मिलाये स्वर से स्वर गाये ये गाना
मैं भी चाहूँ..............
गुरुवार, 15 अप्रैल 2010
Neta.
Hi...Shri Ram chandra ji ne Ravan se uddha karne k pahele jis taraha apni senaka shahas badhaya,aaj koi assa nahi jo paak k khilaph hamari sena ka shahas badha sake.Aaj to apni hi sena ko hutotsahit kar rahe hai kasa durbhagya hai hamara.Ab in netawo se Shri Ran ji hi bacha sakte hai.
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