आखिरी तमन्ना
यह गीत मेरे पिता जी ने लिखा ,कब लिखा यह तो नहीं पता पार शायद इस दुनिया की धन लोलुपता देख कर अपनी इच्छा ज़ाहिर की होगी ,वो हनुमान जी के भक्त है ,यहाँ उन्होंने भगवन श्री कृष्ण से अपने दिल की यह बात कही की......................
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये ,
तेरा नाम रटते -रटते ,तन प्राण छूट जाये,
मेरे दिल में तेरी मूरत , ऐसे बसे मुरारी,
जल जाये प्रेम ज्योति ,अभिमान छूट जाये,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
निर्मल हो मेरा अंतर ,तेरा जप चले निरंतर,
बहे कृष्ण नाम धारा,मद कम छूट जाये ,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
क्या गरज धन कमा कर ,दुनिया में नाम पायें ,
मुझे चरणों में जगह दो ,सम्मान छूट जाये ,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
मुझे अपना जो बना लो ,दुख द्वंदों से छुड़ा कर ,
मिटे राग द्वेष सारा,जप ध्यान छूट जाये,
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये
न हुनर न कोई ढंग है,'आर्त' हीन मन है,
क्या अभी भी हम पे शक है जो श्याम रूठ जाये .
है आखिरी तमन्ना ,जग जाल छूट जाये.
2 टिप्पणियां:
शायद हर दिल की यही तमन्ना होती है।
कल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बडा मस्त लिखेला है बाप
प्रशंसार्ह:
एक टिप्पणी भेजें