रविवार, 8 अगस्त 2010

दोस्तों आज कल के इस मौसम में जहाँ हर तरफ पानी ही पानी बर्ष रहा है वाही कहीं -कहीं बरसात न होने के कारन सूखे के आसार नज़र आ रहे है. जैसे हमारे अकबरपुर शहर की तरफ | ऐसा लगने लगा है की इन्द्र देवता हम से नाराज़ हो गाये है.उनके इस व्यवहार से बस यही गाने को मन करता है की....................

              हरे रामा रक्षा  करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी|
             
सावन सस्य  श्याम वसुधा चाहे ,उमणि-घुमणि घन बरसे रामा
                                           हरे रामा तब भये सूर्य सयाने  धन मुरझाने रे हारी |
              हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |




भादौ भरे लाल पोखर तेहि,राज सकल जग सूखे रामा ,
                                       हरे रामा रोवै गरीब किसान ,राम रिसियाने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |



क्वार कड़की कै का करिहै ,जब कुहिकी जाये किसनैया रामा ,
                                        हरे रामा चुनिगा चिरैया खेत तो का पछताने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |



बूढ़ भये किधौ मन मोहन नहीं ,सूझत जगत बिपतिया रामा ,
                                            हरे रामा सोवो यशोदा के पूत पीताम्बर ताने रे हारी |
हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |



देखि अनीति अधीर 'आर्त' से,सुरपति कतहु भेटाने रामा ,
                                       हरे रामा लाठिनी फोरी कापर ,निपट लेब थाने रे हारी |
   हरे रामा रक्षा करो जदुवीर इंद्र रिसियाने रे हारी |

1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी